क्या आप यह यह विश्वास कर सकते हैं कि हम जिस समय अपने आप को तैयार कर रहे होते हैं ऐसी उम्र जब हम खेलने कूदने के सपने देखते हैं नई चीजों की डिमांड करते हैं। हम कड़ाके की ठंड में रजाई में सर्दी से सर्दी से बच रहे होते हैं उस समय एक व्यक्ति अपनी आंखों में बड़े सपने को लेकर घूम रहा होता है उस व्यक्ति का नाम है रितेश अग्रवाल जिन्होंने 350
करोड़ से ज्यादा ज्यादा की कंपनी बनाई है उनके एस बड़े सपने की कामयाबी की कहानी की कठोर परिश्रम की पीछे की कहानी बताने जा रहा हूं उन्होंने कुछ बड़ा करने के लिए हर रोज 16 घंटे तक काम करके अपने सपनों को साकार कर दिया है यह इतना मुश्किल काम नहीं है जितना लगता है उस समय भावेश अग्रवाल की उम्र 20 वर्ष की थी जब उन्होंने ओयो रूम सके शुरुआत करी उनकी मेहनत को देखकर बड़े-बड़े अनुभवी बिजनेसमैन को आश्चर्यचकित कर दिया
Oyo rooms का मुख्य उद्देश्य ट्रेवल को बेहतरीन मूलभूत सुविधाओं के साथ सस्ते दामों पर शहर के छोटे बड़े शहरों मे होटल रूम उपलब्ध कराना है
रितेश अग्रवाल आम विद्यार्थी की तरह समन देखने वाले बिजनेसमैन बन जाएंगे यह किसी ने नहीं सोचा था कभी-कभी सामान देखने वाले व्यक्ति भी बहुत बड़ा काम करे जाते हैं जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होती है। रितेश ने 21 साल की उम्र में सही अफसर को पहचानने की क्षमता और मेहनत के बल पर अपने विचारों को वास्तविकता का रूप दे दिया
रितेश अग्रवाल ने छोटी सी उम्र में काम को समझना शुरू कर दिया था इसमें सबसे बड़ी भूमिका उनके परिवार की रही है जिन्होंने होने फुल सपोर्ट किया है उनका जन्म 16 नवंबर 1993 में उड़ीसा राज्य के जिले में हुआ है
2012 मैं उन्होंने अपने पहले स्टार्टअप ओरावेल स्टेज की शुरुआत की इस कंपनी का उद्देश्य ट्रेवल्स को छोटी या मध्य अवधि के लिए सस्ते दामो पर कमरा उपलब्ध करवाना था। इसे कोई भी आसानी से ऑनलाइन आरक्षित कर सकता था। कंपनी के शुरू होने के कुछ महीने के अंदर नई स्टार्टअप करने वाली कंपनी venture नर्सरी से 3000000 का फंड प्राप्त हो गया हम रितेश को अपनी कंपनी को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त पैसे आ गए थे उसी समय अंतराल में उन्होंने अपने इस बिजनेस आइडिया को theil fellowship जोकि paypal कंपनी के संस्थापक (पीटर thiel)
Theil फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता है। दसवां स्थान प्राप्त करने में सफल रहे और उन्हें फैलोशिप के रूप में 66 क्लॉक रुपए की राशि मिली
बहुत ही कम समय में उन्होंने दूसरे स्टार्टअप के लिए शुरुआत कर दी और सफलताओं के चलते बे आगे बढ़ते चले ग। बे अपने स्टार्टअप पर बारीकी से काम करने लगे लेकिन यह उनका स्टार्टअप घाटे मैं जाने लगा और ओ रावल कंपनी धीरे-धीरे घाटे में चलने लगी। भी बहुत कोशिश करते अपने बिजनेस को आगे बढ़ाने की परंतु उन्हें असफलता मिल रही थी जब उन्होंने ओरावेल से ओयो का नाम दिया। फिर भी वह निराश नहीं हुए बाहर मानने वाले में से नहीं थे दोबारा स्वयं योजना बनाई हुई पर काम करना शुरुआत की। आपके कमियों को बारीक से चेक किया कहां गलतियां हो रही है। से उन गलतियों को सुधारा जाए। बहुत कोशिश के बाद उन्हें समझ मैं आ गया। इससे उनकी उन्हें यह अनुभव हुआ कि सस्ते होटल्स में कमरे मिलना या ना मिलना कोई समस्या नहीं है। दरअसल कमी है कम रेट मैं बेहतरीन अनुभव और बेहतरीन अनुभव ना दे पाना यह समस्या थी इसका समाधान को ध्यान में रखते हुए इसको सुधार आ गया। अब रितेश के काम करने का तरीका बदल चुका था अब उन्हें सफलता मिल रही थी और कंपनी उनकी फायदे में जा रही थी और धीरे-धीरे वह अपने काम को इसी ट्रैक् पर ले गए
ऐसे बने रितेश अग्रवाल एक ओयो की कंपनी के मालिक